मुकेश सिंह के बारे में:
मुकेश सिंह का जन्म मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के छोटे से ग्राम रीछा में हुआ था, वर्तमान में वो शासकीय सेवक हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई विपरीत परिस्थितियों में बहुत ही कठिनाई से पूरी की, इसलिए पढ़ाई की महत्वता को समझते हुए EDUCATION FOR CHANGE सोसायटी का निर्माण हुआ जिसके वो फाउंडर मेंबर भी है।
मुकेश जी शासकीय सेवा के साथ समाज सेवा भी करते है, इनके निःस्वार्थ सेवा भाव को देखते हुए वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा इनके कार्य को अक्सर सराहा गया है व जिला स्तर पर कई बार सम्मानित भी किया गया है। मुकेश जी एक अच्छे वक्ता भी है, इनके भाषण में हमेशा युवाओ में जोश भरने वाले शब्दों का समावेश होता है। इनके सहयोग से सायरस मल्टीकास्ट कंपनी का निर्माण हुआ।
मुकेश जी का जीवन बहुत ही संघर्ष पूर्ण रहा है किंतु इनकी निडरता एवं हार न मानने की आदत इन्हें अच्छे मुकाम पर पहुँचाती जा रही है।
LiFT: हमें अपनी पुस्तक और इसे लिखने की यात्रा के बारे में बताएं।
मुकेश सिंह: सामान्यतः युवा अपने भविष्य को लेकर डरे हुए हैं, और इसी डर की वजह से वो अपने भविष्य के लिए उचित निर्णय नहीं ले पा रहे हैं, यह किताब बहुत से युवाओं से लिए अनुभवों का सार है, इसमें कोविड के समय की एक कहानी है जिसमे दो युवा अपना व्यापार शुरू करना चाहते है लेकिन वो कॉविड जैसे महामारी में पूरी तरह घिर जाते हैं, और कहा जाए तो वो अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं, और फिर उन्होंने अपने डर को समझा ।
तो वे अपने काम में सफल हुए, यह उस कहानी का प्रथम भाग है दूसरा भाग कुछ समय बाद आएगा।
LiFT: आपने अपनी पुस्तक के लिए यह शीर्षक क्यों चुना?
मुकेश सिंह: इस शीर्षक को इसलिए चुना है, क्योंकि मेरे जीवन में भी बहुत सी घटनाएं हुई हैं जिसमें यदि में डर जाता तो शायद ये सब नहीं कर पाता।
इंसान का डर ही है जो उसे आगे नहीं बढ़ने देता है।
इसलिए मैने केवल डर पर लिखना उचित समझा है।
LiFT: आपको कब पता चला कि आप एक लेखक बनना चाहते हैं और इसके पीछे आपकी प्रेरणा क्या है?
मुकेश सिंह: इसका पूरा श्रेय मेरे मामा जी श्री मनोज चौधरी जी को जाता है, उन्होंने मुझे मेरा पसंदीदा क्षेत्र याद दिला दिया था, में अपने स्कूल टाइम में कविताएं एवम लेख लिखता था, पर अब नौकरी अब नौकरी के चलते लिख नहीं पा रहा था। लेकिन घटना हमारे रिश्तेदारों के यहां हुई थी, जिस मुझे मामा जी द्वारा कहा गया था की तुम इस पर किताब लिखो, इस विषय पर अभी काम चल रहा है, लेकिन फिर मेने डर पर लिखना उचित समझा।
LiFT: साहित्य की दुनिया में दस साल बाद आप खुद को कहां देखते हैं?
मुकेश सिंह: हर इंसान की कुछ अकांछाए होती है, साहित्य के क्षेत्र में मेरा भी एक सपना है की मेरी रचनाएं राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाए।
LiFT: क्या आपको लगता है कि किसी किताब को प्रमोट करने और उसके पाठकों को बढ़ाने के लिए किताब की मार्केटिंग या क्वॉलिटी जरूरी है?
मुकेश सिंह: कोई भी कार्य सही ढंग से किया जाए तो उसके बेहतर परिणाम मिलते हैं, वैसा ही किताबो के क्षेत्र में है यदि अपनी किताब लोगो तक नहीं पहुंच पाएगी तो शायद उसे बड़ी उपलब्धि न मिले।
लेकिन मार्केटिंग एक ऐसा माध्यम है जिसे बेहतर तरीके से किया जाए तो कोई किताब जल्दी मशहूर हो सकती है। और गुणवत्ता की बात करे तो ग्राहक कोई भी चीज खरीदने के पहले वैल्यू फॉर मनी देखता है। किताब की गुणवत्ता अच्छी रहेगी तो मार्केटिंग अच्छी होगी।
LiFT: आप अपने लेखन से लोगों को क्या संदेश देना चाहते हैं?
मुकेश सिंह: मेरा लोगो को एक ही संदेश है डरे नहीं निडरता से अच्छा काम करते चले, लेकिन वो काम अच्छा हो जिससे लोगो का सरोकार हो, यदि आप गलत काम करेंगे तो सीधी सी बात है आपको डर लगेगा। और परिणाम भी गलत आएगा। और इसमें काम करने की नियत बहुत मायने रखती है, की आप कोई भी काम किस नियत से कर रहे हैं, यदि आपकी नियत गलत होगी और काम अच्छा होगा तो आप सफल नहीं हो पाएंगे।
LiFT: आप लेखन के अलावा क्या करते हैं?
मुकेश सिंह: में मध्यप्रदेश में ग्रामीण विकास विभाग अंतर्गत ग्राम रोजगार सहायक पद पर कार्यरत हूं।
LiFT: क्या आप अपनी अगली किताब पर काम कर रहे हैं? यदि हां, तो कृपया हमें इसके बारे में कुछ बताएं।
मुकेश सिंह: मेरी अगली (किताब – लेडी एमआर) है जो एक लड़की की कहानी है।
यह भी एक प्रेरक कहानी रहेगी, जिसमे एक नारी के संघर्ष की कहानी है।
LiFT: नवोदित लेखकों को आपके क्या सुझाव हैं ताकि वे अपने लेखन कौशल में सुधार कर सकें?
मुकेश सिंह: वास्तव साहित्य भी लोकतंत्र का पांचवा स्तंभ हैं, नए लेखक और कवि अभी से आदत डाले की आपको दरबारी कवि बनकर नहीं रहना है, एक कहावत है जहां न जाए रवि वहा जाए कवि। यदि हम शासन के अच्छाई कविताओं में दिखाएंगे, जो सभी को दिखा रही है तो आप कौन सा अनोखा कार्य कर रहे हैं अनोखा कार्य तो तब होगा जब आप उन घटनाओं को दिखाए जो लोगो को नही दिखा पा रही है, हालाकि कठिन है, लेकिन डर के आगे जीत भी है।
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One thought on “In Conversation With Mukesh Singh”
Proud of you brother
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